संध्यारति स्तुति

संध्यारति स्तुति

हे राम पुरुषोत्तम नरहरे नारायण केशव,

हे गोविंद गरुड़ध्वज गुणनिधे दामोदर माधव।

हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते,

हे वैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहि माम्।।

हे गोपालक हे कृपाजलनिधे हे सिंधुकन्यापते,

हे कंसान्तक हे गजेन्द्रकरुण पाहि नो हे माधव।

हे रामानुज हे जगत्रयगुरो हे पुण्डरीकाक्ष माम्,

हे गोपीजननाथ पालय परं जानामि न त्वां विना।।

कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभम्,

नासाग्रे गजमौक्तिकं करतले वेणुं करे कंकणम्।

सर्वाङ्गे हरिचंदनं सुललितं कण्ठे च मुक्ताबलिम्,

गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपाल चूड़ामणिः ।।

आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगकाञ्चनं,

वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।

बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लङ्कापुरीदाहनं,

पश्चात् रावणकुम्भकर्णहननं एतत् श्रीरामायणम्।।

आदौ देवकीदेवगर्भजननं गोपीगृहे वर्द्धनं,

मायापूतनाजीवतापहरणं गोवर्द्धनधारणम्।

कंसच्छेदनं कौरवादिहननं कुन्तीसुतपालनं,

एतत् श्रीमद्भागवतपुराणकथितं श्रीकृष्णलीलामृतम्।।

पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन स्वयं,

व्यासेन ग्रथितां पुराणमुनिना मध्ये महाभारते।

अद्वैतामृतवर्षिणीं भगवती दशाध्यायिनी – मम्बत्वामनुसन्दधामि भगवद्गीते भवद्वेषिणीम्।।

नमोस्तुते व्यास विशालबुद्धे

फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र

येन त्वया भारत तैलपूर्ण

प्रज्वालितो ज्ञानमयः प्रदीपः ।।

चलो सखि तहाँ जाईये जहाँ बसे ब्रजराज।

गोरस बेचत हरि मिलये एक पंथ दुह काज।।

ब्रजचौराशी क्रोश में चारि ग्राम निज धाम।

वृंदावन और मधुपुरी बर्षाणे नंदग्राम।।

वृंदावन से वन नहीं नंदग्राम से ग्राम।

बंशीवट से वट नहीं श्रीकृष्ण नाम से नाम।।

एक घड़ि आधि घड़ि आधि में पुनि आध।

तुलसी संगत साधुन की हरे कोटि अपराध।।

सीयावर रामचंद्रजी की जय, अयोध्या रामललाजी की जय, हनुमानगरुड़देवजी की जय, उमापति महादेवजी की जय, रमापति रामचंद्रजी की जय, वृंदावन कृष्णचंद्रजी की जय, ब्रजेश्वरी राधारानी जी की जय, बोलो भाई सब संतन और भक्तन की जय, अपने अपने गुरुगोविंद की जय, संध्यारति की जय, जय जय श्रीराधेश्याम ।।

संध्यारति स्तुति के बाद कुछ समय तक “जय राधेश्याम राधेश्याम, राधेश्याम जय श्यामाश्याम, जय सीताराम, सीताराम, सीताराम जय सीयावर राम, जय राधेश्याम……”।  यह कीर्तन करना चाहिये और इसके बाद जयध्वनि देनी चाहिये।

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